Wednesday 19 April 2017

भवर

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यु सपनो  के भवर मैं जिंदगी घूमी 


यु सपनो  के भवर मैं जिंदगी घूमी 
के ना कोई अपना रहा , न कोई सपना रहा 

एक एक तिनके कर के सपने बटोरते गए तो अपने हमें छोरते गए
गर अपनों को बटोरने गए तो ये सपने हमें छोड़ते गए 

इस कदर तनहइयो का अहसास बड़ गया 
के सपनो मैं  भी अपनों को टटोलते  रहे

मैं  तनहा था  कभी इस कदर
इक तेरी चाह मैं खुद को भी अंधेरो मैं ढूंढते रह गए 
  

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