Thursday, 27 April 2017

दगा

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दगा



अक्सर मोहब्बत करते हुए लोग दगा दे जाते है
क्यों नफरत मैं  दगा कोई देता नहीं 
थक जाती है सचाई चिल्लाते  हुए 
क्यों झूठ चुप रहकर भी जीत जाता हैं 

कहते है के दीवारों के  भी कान होते है
क्यों इन कानो मै मोहब्त की बात सुनी नहीं देती
यु तो बहुत कच्चे मकान होते है 
पर क्यों साजिशे क आगे पक्के घरोंदे भी टूट जाते है

सफर लम्बा होतो कुछ आराम कर लो
दो घडी की फुर्सत से कुछ ना   बिगड़ेगा
मंजिल तो कब आएगी कोई ना जाने 
पर रास्ता तो आराम से काट जायेगा

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