Wednesday 19 April 2017

तुम्हरे बिना

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तम्मनाए तो और भी बहुत थी एक तेरी तम्मना के सिवा 
लेकिन ना जाने क्यों कुछ याद न रहा इक तेरी तम्मना के सिवा 

शाम  होते ही, हो जाता है ये शहर रोशन 
क्यों मेरे आंगन मै कोई रौशनी का ठिकना  नहीं 
इक टूटी हुई शम्मा क बिना

सोचा था के इक दिन  ताजमहल जैसा कुछ बनायूंगा 
अब सोचता  हु के करुंगा ताजमहल का मैं 
तेरे साथ के  बिना 

मेरे आँगन मैं है एक बेर का पेड़ 
उसपर एक  चिड़िया का घोसल भी है 
पर तू कहा है इस आँगन मैं ये बता 

ऐसा तो नहीं के जिंदगी रुक गई  बिन
मैं सांस भी लेता हु और  जिन्दा भी हु 
तुम्हरे बिना  

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