Friday 28 April 2017

मोहबत भी इबादत भी

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मोहबत भी  इबादत भी


गर मोहबत भी  इबादत ही है
तो ये बदनाम कैसे हुई
गर इबादत मैं खलल गुनाह है  तो 
तो मोहब्बत पे बंदिशे क्या है

मोहबत तो मोहब्बत है 
इसे मोहब्बत से क़बूले दुनिया तो बेहतर है 
ये दुनिया जन्नत है इसके दम पर
वार्ना तो ये जहन्नुम से भी बदतर है

मोहबत झरना है नूर का
या इत्तर है फिरदौस का 
गर खुदा खौफ हो तो इबादत करना , 
मोहब्बत से बगावत मत करना 

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