Thursday 27 April 2017

रिश्तो की महफ़िल

No comments :










रिश्तो की महफ़िल मैं हर दिल तंग सा क्यों है
कोई अधूरा तो  कोई बेनाम सा क्यों है

कैसी उदासी छायी  है चेहरे पे तुम्हारे
मेरी हर आवाज  वो गुमनाम से क्यों हो

मुस्कराने की अदा तो हर एक को पता है
पर फिर भी लबो से मुष्कराहट अनजान सी क्यों है

 यु तो बहुत है महफ़िल मई ठहाके लगाने वाले
पर ठहाको से ख़ुशी की पहचान क्यों नहीं

ये रौशनी ये पानी मैं जलते दीयेऔर ये शानो शौकत
सब तो है मगर ये  मेरे काम के  क्यों  नहीं

प्यार मोहब्बत और ऐतबार से बनते है रिश्ते
पर इन  लफ्जो पे मौसम मैं जंग एलान सा क्यों है 

No comments :

Post a Comment