Friday, 28 December 2018

फूलों की आरज़ू में बड़े ज़ख़्म खाये हैं

No comments :
फूलों की आरज़ू में बड़े ज़ख़्म खाये हैं
लेकिन चमन के ख़ार भी अब तक पराये हैं
उस पर हराम है ग़म-ए-दौराँ की तल्ख़ियाँ 
जिसके नसीब में तेरी ज़ुल्फ़ों के साये हैं
महशर में ले गैइ थी तबियत की सादगी 
लेकिन बड़े ख़ुलूस से हम लौट आये हैं
आया हूँ याद बाद-ए-फ़ना उनको भी 'अदम
क्या जल्द मेरे सीख पे इमान लाये हैं

No comments :

Post a Comment

{js=d.createElement(s);js.id=id;js.src=p+'://platform.twitter.com/widgets.js';fjs.parentNode.insertBefore(js,fjs);}}(document, 'script', 'twitter-wjs');