Monday, 24 December 2018
राणाजी, थें क्यांने राखो म्हांसूं बैर
राणाजी, थें क्यांने राखो म्हांसूं बैर।
थे तो राणाजी म्हांने इसड़ा लागो, ज्यूं बृच्छन में कैर।
महल अटारी हम सब त्याग्या, त्याग्यो थारो बसनो सैर॥
काजल टीकी राणा हम सब त्याग्या, भगती-चादर पैर।
मीरा के प्रभु गिरधर नागर इमरित कर दियो झैर॥
पाठांतर
राणाजी थें क्यांने राखों म्हाँसू बैर।।टेक।।
थें तो राणाजी म्हाँने इसड़ा लागो ज्यों ब्रच्छन में कैर।
महल अटारी हम सब त्यागा, त्याग्यो थारो बसनो सहर।
कागज टीकी राणा हम सब त्यागा भगवीं चादर पहर।
मीराँ के प्रभु गिरधरनागर, इमरित कर दियो जहर।।
थे तो राणाजी म्हांने इसड़ा लागो, ज्यूं बृच्छन में कैर।
महल अटारी हम सब त्याग्या, त्याग्यो थारो बसनो सैर॥
काजल टीकी राणा हम सब त्याग्या, भगती-चादर पैर।
मीरा के प्रभु गिरधर नागर इमरित कर दियो झैर॥
पाठांतर
राणाजी थें क्यांने राखों म्हाँसू बैर।।टेक।।
थें तो राणाजी म्हाँने इसड़ा लागो ज्यों ब्रच्छन में कैर।
महल अटारी हम सब त्यागा, त्याग्यो थारो बसनो सहर।
कागज टीकी राणा हम सब त्यागा भगवीं चादर पहर।
मीराँ के प्रभु गिरधरनागर, इमरित कर दियो जहर।।
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