Saturday, 1 December 2018

जो परखै, सर्प डंसै, सोई मरै,

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जो परखै, सर्प डंसै, सोई मरै,
बुद्धि से भिन्न यह सब धर्म स्वतः शून्य,
अदृश्य स्वभाव, महामुद्रा का वास,
सहज एकरस से अन्य नहीं (तत्त्व)
अहो डाकिनी गुह्य वचन,
सन्तों के मुखामृत से संभूत,
रवि-शशि दोनों के मध्य प्रकाश करै।

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