Sunday 17 March 2019

बस कि दुश्वार है हर काम का आसां होना bas ki dushvar hai har kaam ka

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बस कि दुश्वार है हर काम का आसां होना
आदमी को भी मयस्सर नहीं इंसां होना

गिरियां चाहे है ख़राबी मेरे काशाने की
दर-ओ-दीवार से टपके है बयाबां होना

वाए, दीवानगी-ए-शौक़ कि हरदम मुझको
आप जाना उधर और आप ही हैरां होना

जल्वा अज़-बसकि तक़ाज़ा-ए-निगह करता है
जौहर-ए-आईना भी चाहे है मिज़गां होना

इशरते-क़त्लगहे-अहले-तमन्ना मत पूछ
ईद-ए-नज़्ज़ारा है शमशीर का उरियां होना

ले गये ख़ाक में हम दाग़-ए-तमन्ना-ए-निशात[12]
तू हो और आप बसद-रंग[13] गुलिस्तां होना

इशरत-ए-पारा-ए-दिल[14] ज़ख़्म-ए-तमन्ना ख़ाना
लज़्ज़त-ए-रेश-ए-जिग़र[15] ग़र्क़-ए-नमकदां[16] होना

की मेरे क़त्ल के बाद उसने जफ़ा[17] से तौबा
हाय उस ज़ूद-पशेमां[18] का पशेमां[19] होना

हैफ़[20] उस चार गिरह[21] कपड़े की क़िस्मत 'ग़ालिब'
जिसकी क़िस्मत में हो आशिक़ का गिरेबां होना


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