Sunday 31 March 2019

वो मेरी चीन-ए-जबीं से ग़मे-पिनहां समझा vo meri chin ae jabi

No comments :

वो मेरी चीन-ए-जबीं से ग़मे-पिनहां समझा
राज़-ए-मकतूब ब बे-रबती-ए-उनवां समझा

यक अलिफ़ बेश नहीं सैक़ल-ए-आईना हनूज़
चाक करता हूं मैं जब से कि गिरेबां समझा

शरह-ए-असबाब-ए-गिरफ़तारी-ए-ख़ातिर मत पूछ
इस क़दर तंग हुआ दिल कि मैं ज़िन्दां समझा

बद-गुमानी ने न चाहा उसे सरगरम-ए-ख़िराम
रुख़ पे हर क़तरा अ़रक़ दीदा-ए-हैरां समझा

अ़जज़ से अपने यह जाना कि वह बद-ख़ू होगा
नब्ज़-ए-ख़़स से तपिश-ए-शोला-ए-सोज़ां समझा

सफ़र-ए-इश्क़ में की ज़ोफ़ ने राहत-तलबी
हर क़दम साए को मैं अपने शबिस्तां समझा

था गुरेज़ां मिज़गां-हाए-यार से दिल ता-दम-ए-मर्ग
दफ़अ-ए-पैकान-ए-क़ज़ा उस क़दर आसां समझा

दिल दिया जान के क्यूं उस को वफ़ादार 'असद'
ग़लती की कि जो काफ़िर को मुसलमां समझा


No comments :

Post a Comment