Sunday, 31 March 2019
शब कि वह मजलिस-फ़रोज़-ए-खल्वत-ए-नामूस था shab ki vah majlis faroj
शब कि वह मजलिस-फ़रोज़-ए-खल्वत-ए-नामूस था
रिश्ता-ए हर शमअ़ खार-ए-किस्वत-ए-फ़ानूस था
मशहद-ए-आशिक़ से कोसों तक जो उगती है हिना
किस कदर या रब हलाक-ए-हसरत-ए-पाबोस था
हासिल-ए-उल्फ़त ना देखा जुज
शिकस्त-ए-आरजू
दिल ब दिल पैवस्त गोया इक लब-ए-अफ़सोस था
क्या कहूं बीमारी-ए-ग़म कि फ़राग़त का बयां
जो कि खाया, ख़ून-ए-दिल बेमिन्नत-ए-कैमूस था
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