Sunday 24 March 2019

गिला है शौक़ को दिल में भी तंगी-ए-जा का gila hai shouk ko dil mei bhi

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गिला है शौक़ को दिल में भी तंगी-ए-जा का
गुहर में महव हुआ इज़्तराब दरिया का

ये जानता हूँ कि तू और पासुख़-ए-मकतूब
मगर सितमज़दा हूँ ज़ौक़े-ख़ामा-फ़र्सा का

हिना-ए-पा-ए-ख़िज़ां है बहार, अगर है यही
दवाम क़ुल्फ़ते-ख़ातिर है ऐश दुनिया का

ग़मे-फ़िराक़ में तकलीफ़-सैरे-गुल न दो
मुझे दिमाग़ नहीं ख़न्दा-हाए-बेजा का

हनूज़ महरमी-ए-हुस्न को तरसता हूँ
करे है हर बुने-मू काम चश्मे-बीना का

दिल उसको पहले ही नाज़ो-अदा से दे बैठे
हमें दिमाग़ कहां हु्स्न के तक़ाज़ा का

न कह कि गिरिया बमिक़दारे-हसरते-दिल है
मेरी निगाह में है जमओ़-ख़रज दरिया का

फ़लक को देखके करता हूँ उसको याद ‘असद’
जफ़ा में उसकी है अन्दाज़ कारफ़रमा का


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