Wednesday, 13 March 2019
हर रविश ख़ाक उड़ाती है सबा मेरे बाद har ravish khaak udati hai sabaa mere baad
हर रविश ख़ाक उड़ाती है सबा मेरे बाद
हो गई और ही गुलशन की हवा मेरे बाद
क़त्ल से अपने बहुत ख़ुश हूँ वले ये ग़म है
दस्त-ए-क़ातिल को बहुत रंज हुआ मेरे बाद
मुझ सा बद-नाम कोई इश्क़ में पैदा न हुआ
हाँ मगर कै़स का कुछ नाम हुआ मेरे बाद
वो जो बर्गश्तगी-ए-बख़्त थी हरगिज़ न गई
ख़ाक-ए-मरक़द से मेरे चाक बना मेरे बाद
वलवला जोश-ए-जुनूँ का था मुझी तक ‘गोया’
नज़र आया न कोई आबला-पा मेरे बाद
Subscribe to:
Post Comments
(
Atom
)
No comments :
Post a Comment