Sunday 31 March 2019

यक ज़र्रा-ए-ज़मीं नहीं बेकार बाग़ का yak jaraa ae jamee nahi bekar

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यक ज़र्रा-ए-ज़मीं नहीं बेकार बाग़ का
यां जादा भी फ़तीला है लाले के दाग़  का

बे-मै किसे है ताक़त-ए-आशोब-ए-आगही
खेंचा है अ़ज़ज़-ए-हौसला ने ख़त अयाग़ का

बुलबुल के कार-ओ-बार पे हैं ख़नदा-हाए-गुल
कहते हैं जिस को इश्क़ ख़लल है दिमाग़ का

ताज़ा नहीं है नशा-ए-फ़िकर-ए-सुख़न मुझे
तिरयाकी-ए-क़दीम हूं दूद-ए-चिराग़ का

सौ बार बंद-ए-इश्क़ से आज़ाद हम हुए
पर क्या करें कि दिल ही अदू है फ़राग़ का

बे-ख़ून-ए-दिल है चश्म में मौज-ए-निगह ग़ुबार
यह मै-कदा ख़राब है मै के सुराग़ का

बाग़-ए-शिगुफ़ता तेरा बिसात-ए-नशात-ए-दिल
अब्र-ए-बहार ख़ुम-कदा किस के दिमाग़ का


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