Sunday 17 March 2019

शब, कि बर्क़े-सोज़े-दिल से ज़ोहरा-ए-अब्र आब था sab ki barke soz ae dil se

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शब, कि बर्क़े-सोज़े-दिल से ज़ोहरा-ए-अब्र आब था
शोला-ए-जवाला हर इक हल्क़ा-ए-गिरदाब था

वां करम को उज़्रे-बारिश था इनागीरे-ख़िराम
गिरये से यां पुनबा-ए-बालिश कफ़े-सैलाब था

वां ख़ुद आराई को था मोती पिरोने का ख़याल
यां हुजूमे-अश्क में तारे-निगह नायाब था

जल्वा-ए-गुल ने किया था वां चिराग़ां आबे-जू
यां रवां मिज़गाने-चश्मे-तर से ख़ूने-नाब था

यां सरे-पुर-शोर बेख़्वाबी से था दीवार-जू
वां वो फ़रक़े-नाज़ महवे-बालिशे-कमख़्वाब था

यां नफ़स करता था रौशन शम्अ-ए-बज़मे-बेख़ुदी
जल्वा-ए-गुल वां बिसाते-सोहबते-अहबाब था

फ़रश से ता-अरश वां तूफ़ां था मौज-ए-रंग का
यां ज़मीं से आस्मां तक सोख़्तन का बाब था

नागहां इस रंग से ख़ूं-नाबा टपकाने लगा
दिल कि ज़ौक़-ए-काविश-ए-नाख़ुन से लज़्ज़त-याब था

नाला-ए-दिल में शब अन्दाज़-ए-असर नायाब था
था सिपन्द-ए-बज़्म-ए-वस्ल-ए-ग़ैर, गो बेताब था

मक़दम-ए-सैलाब से दिल क्या निशात-आहंग है
ख़ाना-ए-आशिक़ मगर साज़-ए-सदा-ए-आब था

नाज़िश-ए-अय्याम-ए-ख़ाकस्तर-नशीनी क्या कहूं
पहलूए-अन्देशा वक़्फ़-ए-बिस्तर-ए-संजाब था

कुछ न की अपने जुनून-ए-ना-रसा ने, वरना यां
ज़र्रा-ज़र्रा रूकश-ए-ख़ुर्शीद-ए-आलम-तान था

आज क्यों परवा नहीं अपने असीरों की तुझे
कल तलक तेरा भी दिल मेहर-ओ-वफ़ा का बाब था

याद कर वह दिन कि हर इक हल्क़ा तेरा दाम का
इन्तज़ार-ए-सैद में इक दीदा-ए-बेख़्वाब था

मैं ने रोका रात ग़ालिब को वगरना देखते
उसके सैल-ए-गिरयां में गरदूं कफ़-ए-सैलाब था


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