Sunday 31 March 2019

तू दोस्त किसी का भी सितमगर न हुआ था tu dost kisi ka bhi sitamgar na hua

No comments :

तू दोस्त किसी का भी सितमगर न हुआ था
औरों पे है वो ज़ुल्म कि मुझ पर न हुआ था

छोड़ा मह-ए-नख़शब की तरह दस्त-ए-क़ज़ा ने
ख़ुर्शीद हनूज़ उस के बराबर न हुआ था

तौफ़ीक़ बअन्दाज़ा-ए-हिम्मत है अज़ल से
आँखों में है वो क़तरा कि गौहर न हुआ था

जब तक की न देखा था क़द-ए-यार का आ़लम
मैं मुअ़़तक़िद-ए-फ़ित्ना-ए-महशर न हुआ था

मैं सादा-दिल, आज़ुर्दगी-ए-यार से ख़ुश हूँ
यानी सबक़-ए-शौक़ मुकर्रर न हुआ था

दरिया-ए-मआ़सी तुनुक-आबी से हुआ ख़ुश्क
मेरा सर-ए-दामन भी अभी तर न हुआ था

जारी थी असद दाग़-ए-जिगर से मेरी तहसील
आतिशकदा जागीर-ए-समन्दर न हुआ था


No comments :

Post a Comment