Sunday 31 March 2019

मैं और बज़्मे-मै, से यूं तश्नाकाम आऊं! Mai aur bazm ae

No comments :

मैं और बज़्मे-मै, से यूं तश्नाकाम आऊं!
गर मैंने की थी तौबा, साक़ी को क्या हुआ था?

है एक तीर, जिसमें दोनों छिदे पड़ें हैं
वो दिन गए, कि अपना दिल से जिगर जुदा था

दरमान्दगी में 'ग़ालिब', कुछ बन पड़े तो जानूं
जब रिश्ता बेगिरह था, नाख़ून गिरह-कुशा था


No comments :

Post a Comment