Wednesday, 13 March 2019
खोल दी है ज़ुल्फ़ किस ने फूल से रूख़्सार पर khol di hai julf kis ne phool se rukhsaar se
खोल दी है ज़ुल्फ़ किस ने फूल से रूख़्सार पर
छा गई काली घटा सी आन कर गुल-ज़ार पर
क्या ही अफ़शां है जबीन ओ अबरू-ए-ख़म-दार पर
है चराग़ाँ आज काबे के दर ओ दीवार पर
हम अज़ल से इंतिज़ार-ए-यार में सोए नहीं
आफ़रीं कहिए हमारे दीदा-ए-बेदार पर
कुफ्र अपना ऐन दीं-दारी है गर समझे कोई
इज्तिमा-ए-सुब्हा याँ मौकूफ है जु़न्नार पर
है अगर इरफाँ का तालिब ख़ाक-सारी कर शिआर
देखते हैं आइना अक्सर लगा दीवार पर
Subscribe to:
Post Comments
(
Atom
)
No comments :
Post a Comment