Sunday, 10 March 2019
एक एक बून्द ek ek bund
एक एक बून्द
सो सो पल की याद ले बरसती है
जब भी कोई नजर किसी अपने को तरसती है
कोई बून्द याद दिलाती है
एक छतरी , के जिसने बारिश से बचाया कम और भिगोया ज्यादा था
तो कोई बून्द याद कराती है
बारिश के पकोड़े,
के जिनके बहाने फुरसत के सुनहरे लम्हे संग बिताये थे
और एक बून्द वो भी जो चेहरे पर पड़ी के जिसने सोलहवे सावन को याद कराया
एक बून्द वो भी के जिसके सागर में
हमने कागज़ का जहाज़ चलाया था
एक बून्द वो भी के जिसने ये समझाया के बारिश तो महज एक मौसम है ख्वाबो से लेना देना कुछ नहीं इसका
मगर सब कुछ समझ के भी, फिर से एक बून्द बारिश के देख के दिल मचल आया , वो भी तो एक बून्द ही थी
कुछ बुँदे तन्हाई की भी तो है
के जिनमे हमने कई सावन उनके लिए गवाए थे
कुछ बुँदे उन सर्द रातो को भी बरसी थी के जब मैं अकेले बैठ कर रोयी थी
बुँदे अब भी बरसती है
कुछ यादे अब भी मचलती है
दिल अब भी तन्हाई से आजादी चाहता है
के कोई अब भी बूंदों में खुद को भिगोना चाहता है
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