Sunday, 10 March 2019

वो ही नाजुक बून्द, vo hi najuk bund

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ये बुँदे अजब अजब तरह से बरसती है
होती है वो ही नाजुक बून्द
मगर हर वक़्त अलग रंग लेकर बरसती है
सोलहवे साल में,
खुले आँगन में
कोई लड़की बूंदों में भीगकर
प्रीत का इन्तजार में
पथ में ख्वाब सजाती है
तो कही कोई नयी दुल्हन
पहला सावन
पिया से दूर मायके में बिताती है
मगर ख्वाबो में पिया के लिए खुद को सजाती है।

तो कही कोई बिरहन
अकेली बैठ इन बूंदों को गिनती है
और सोचती है के पिया होते
तो वैसा होता
पिया होते तो ऐसा होता

सावन का रंग सदियो से नहीं बदला
मगर लड़कियो के जीवन का हर सावन अलग क्यों होता है

मैं भी सोचती हु तो देखती हु
के ये सब रंग जिए मैंने भी
देखे थे बहुत से खवाब कभी

कभी किसी का इंतजार किया
तो कभी बेपनाह प्यार किया
पर दुनिया ने मेरी हर उम्मीद इन्तजार को
रीत रिवाजो , मान सामान और औरत होने के नाम पर दफना दिया


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