Wednesday, 13 March 2019
हैं दहन ग़ुंचों के वा क्या जाने क्या कहने को हैं hai dahan guncho ke va kya jaane
हैं दहन ग़ुंचों के वा क्या जाने क्या कहने को हैं
शायद उस को देख कर सल्ले-अला कहने को हैं
वस्फ़-ए-चश्म ओ वस्फ़-ए-लब उस यार का कहने को हैं
आज हम दर्स-ए-इशारात ओ शिफ़ा कहने को हैं
आज उन से मुद्दई कुछ मुद्दआ कहने को हैं
पर नहीं मालूम क्या कहवेंगे क्या कहने को हैं
जो वो क़द-क़ामत सदा कहने को हैं
और आशिक़ वस्फ़-ए-क़द-क़ामत तेरा कहने को हैं
पूछ आ क़ातिल से तो वो कब करेगा हम को क़त्ल
आज हम तारीख़-ए-मर्ग आप ऐ क़ज़ा कहने को हैं
मैं तेरे हाथों के क़ुर्बां वाह क्या मारे हैं तीर
सब दहान-ए-ज़ख़्म मुँह से मरहबा कहने को हैं
वो जनाज़े पर मेरे किस वक़्त आए देखना
जब के इज़्न-ए-आम मेरे अक़रिबा कहने को हैं
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