Wednesday, 13 March 2019
हाथ सीने पे मेरे रख के किधर देखते हो hath seene pe mere rakh ke kidhar dekhte
हाथ सीने पे मेरे रख के किधर देखते हो
इक नज़र दिल से इधर देख लो गर देखते हो
है दम-ए-बाज़-पसीं देख लो गर देखते हो
आईना मुँह पे मेरे रख के किधर देखते हो
ना-तवानी का मेरी मुझ से न पूछो अहवाल
हो मुझे देखते या अपनी कमर देखते हो
पर-ए-परवाना पड़े हैं शजर-ए-शम्मा के गिर्द
बर्ग-रेज़ी-ए-मोहब्बत का समर देखते हो
बेद-ए-मजनूँ को हो जब देखते ऐ अहल-ए-नज़र
किसी मजनूँ को भी आशुफ़्ता-बसर देखते हो
शौक़-ए-दीदार मेरी नाश पे आ कर बोला
किस की हो देखते राह और किधर देखते हो
लज़्ज़त-ए-नावक-ए-ग़म 'ज़ौक़' से हो पूछते क्या
लब पड़े चाटते हैं ज़ख़्म-ए-जिगर देखते हो
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