Saturday 13 April 2019

बाग़ पा कर ख़फ़क़ानी, ये डराता है मुझे baagh paakar khafkaani galib

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बाग़ पा कर ख़फ़क़ानी, ये डराता है मुझे
साया-ए-शाख़-ए-गुल अफ़ई नज़र आता है मुझे

जौहर-ए-तेग़ ब-सर-चश्मा-ए-दीगर मालूम
हूं मैं वह सब्ज़ा कि ज़हराब उगाता है मुझे

मुद्दआ महव-ए-तमाशा-ए-शिकसत-ए-दिल है
आईनाख़ाने में कोई लिये जाता है मुझे

नाला सरमाया-ए-यक-आ़लम-ओ-आ़लम कफ़-ए-ख़ाक
आसमां बेज़ा-ए-क़ुमरी नज़र आता है मुझे

ज़िन्दगी में तो वह महफ़िल से उठा देते थे
देखूं, अब मर गए पर, कौन उठाता है मुझे


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