Friday 5 April 2019

फिर इस अंदाज़ से बहार आई fir is andaaj se bahaar aai

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फिर इस अंदाज़ से बहार आई
कि हुए मेहरो-मह तमाशाई

देखो, ऐ साकिनान-ए-ख़ित्त-ए-ख़ाक
इसको कहते हैं आलम-आराई

कि ज़मीं हो गई है सर-ता-सर
रूकशे-सतहे-चर्चे-मीनाई

सब्ज़ा को जब कहीं जगह न मिली
बन गया रू-ए-आब पर काई

सब्ज़ा-ओ-गुल के देखने के लिये
चश्मे-नर्गिस को दी है बीनाई

है हवा में शराब की तासीर
बादा-नोशी है बाद-पैमाई

क्यूँ न दुनिया को हो ख़ुशी "ग़ालिब"
शाह-ए-दींदार[14] ने शिफ़ा[15] पाई


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