Wednesday 3 April 2019

दोनों जहां दे के वो समझे ये ख़ुश रहा dono jahaa deke vo samjhe ye khush

No comments :

दोनों जहां दे के वो समझे ये ख़ुश रहा
यां आ पड़ी ये शर्म की तकरार क्या करें

थक-थक के हर मुक़ाम पे दो चार रह गये
तेरा पता न पायें, तो नाचार क्या करें

क्या शम्अ़ के नहीं है हवाख़्वाह अहल-ए-बज़्म
हो ग़म ही जांगुदाज़ तो ग़मख़्वार क्या करें


No comments :

Post a Comment