Saturday 13 April 2019

रौंदी हुई है कौकबए-शहरयार की rondi hui hai kokbaye

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रौंदी हुई है कौकबए-शहरयार की
इतराए क्यों न ख़ाक, सर-ए-रहगुज़ार की

जब, उस के देखने के लिये, आएं बादशाह
लोगों में क्यों नुमूद न हो, लालाज़ार की

भूखे नहीं हैं सैर-ए-गुलिस्तां के हम, वले
क्योंकर न खाइये, कि हवा है बहार की


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