Saturday 6 April 2019

गुलशन को तेरी सोहबत अज़ बसकि ख़ुश आई है gulshan ko teri sohbat aaj baski

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गुलशन को तेरी सोहबत अज़ बसकि ख़ुश आई है
हर ग़ुंचे का गुल होना आग़ोश-कुशाई है

वां कुनगुर-ए-इसतिग़ना हर दम है बुलंदी पर
यां नाले को और उलटा दावा-ए-रसाई है

अज़ बसकि सिखाता है ग़म, ज़ब्त के अन्दाज़े
जो दाग़ नज़र आया इक चश्म-नुमाई है


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