Friday, 5 April 2019
कब वो सुनता है कहानी मेरी kab vo sunta hai kahani meri
कब वो सुनता है कहानी मेरी
और फिर वो भी ज़बानी मेरी
ख़लिशे-ग़म्ज़-ए-खूँरेज़ न पूछ
देख ख़ूनाबा-फ़िशानी मेरी
क्या बयाँ करके मेरा रोएँगे यार
मगर आशुफ़्ता-बयानी मेरी
हूँ ज़िख़ुद-रफ़्ताए-बैदा-ए-ख़याल
भूल जाना है निशानी मेरी
मुत्तक़ाबिल है मुक़ाबिल मेरा
रुक गया देख रवानी मेरी
क़द्रे-संगे-सरे-रह रखता हूँ
सख़्त-अर्ज़ाँ है गिरानी मेरी
गर्द-बाद-ए-रहे-बेताबी हूँ
सरसरे-शौक़ है बानी मेरी
दहन उसका जो न मालूम हुआ
खुल गयी हेच-मदानी मेरी
कर दिया ज़ओफ़ ने आज़िज़ "ग़ालिब"
नंग-ए-पीरी है जवानी मेरी
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