Wednesday, 3 April 2019

हम पर जफ़ा से तर्के -वफ़ा का गुमाँ नही hum par jfs se tarke

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हम पर जफ़ा से तर्के -वफ़ा का गुमाँ नहीं
इक छेड़ है, वगर्ना मुराद इम्तहाँ नहीं

किस मुँह से शुक्र कीजिए इस लुत्फ़-ए-ख़ास का
पुरसिश है और पा-ए-सुख़न दरमियाँ नहीं

हमको सितम अज़ीज़ सितमगर को हम अज़ीज़
ना-मेहरबाँ नहीं है, अगर मेहरबाँ नहीं

बोसा नहीं न दीजिए दुश्नाम ही सही
आख़िर ज़बाँ तो रखते हो तुम,गर दहाँ नहीं

हरचन्द जाँ-गुदाज़ी-ए-क़हर-ओ-इताब है
हरचन्द पुश्त गर्मी-ए-ताब-ओ-तवाँ नहीं

जाँ मुतरिब-ए-तराना-ए-‘हलमिन मज़ीद’ है
लब, पर्दा संज-ए-ज़मज़म-ए-अलअमाँ नहीं

ख़ंजर से चीर सीना,अगर दिल न हो दुनीम
दिल में छुरी चुभो, मिज़्गाँ गर ख़ूँचकाँ नहीं

है नंगे-सीना दिल अगर आतिशकदा न हो
है आरे- दिल नफ़स अगर आज़रफ़िशाँ नहीं

नुक़्साँ नहीं, जुनूँ में बला से हो घर ख़राब
सौ ग़ज़ ज़मीं के बदले बयाबाँ गराँ नहीं

कहते हो क्या लिखा है तेरे सर नविश्त में
गोया जबीं पे सिज्दा-ए-बुत का निशाँ नहीं

पाता हूँ उससे दाद कुछ अपने क़लाम की
रूहुल-क़ुदूस अगर्चे मेरा हमज़बाँ नहीं

जाँ है बहा-ए-बोसा  वले क्यूँ कहे अभी
‘ग़ालिब’ को जानता है कि वो नीमजाँ  नहीं


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